शरीरक्रिया विज्ञान के विख्यात रूसी विद्वान पैवलॉफ़ (
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शरीरक्रिया विज्ञान विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के कोपेनहेगन, और एक छोटे से परिवार के बाद में समय में स्थानांतरित
3.
इन शारिरिक परिवर्तनों से बहुत सी लडकियां घबराने लगती हैं क्योंकि उनको शरीरक्रिया विज्ञान का बोध नहीं होता है.
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इन नवीन उपकरणों का निर्माण करने के लिये मुख संबंधी अंगरचना, ऊतक विज्ञान और शरीरक्रिया विज्ञान इत्यादि का ज्ञान आवश्यक है।
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इन नवीन उपकरणों का निर्माण करने के लिये मुख संबंधी अंगरचना, ऊतक विज्ञान और शरीरक्रिया विज्ञान इत्यादि का ज्ञान आवश्यक है।
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शरीरक्रिया विज्ञान, विभेद एवं पारिस्थितिकी आते हैं) के संस्थापक कहे जाते हैं, के कार्यों के उपरांत ही, सूक्ष्मजैविकी की सही-सही परिधि का ज्ञान हुआ।
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शौक और शरीरक्रिया विज्ञान में फर्क नहीं कर सकने वाले लोग यहाँ दी गयी अन्य टिप्पणिओं को देख कर भी बहुत कुछ समझ जायेंगे.
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वह एक ओर व्याकरण, भाषाशास्त्र, कलाशास्त्र, दर्शन और छंदशास्त्र के छोरों को छूता है, तो दूसरी ओर मनोविज्ञान और शरीरक्रिया विज्ञान से भी जा जुड़ा है।
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ईसाई बोह्र में डॉक्टर की उपाधि से सम्मानित किया गया शरीरक्रिया विज्ञान विश्वविद्यालय से कोपेनहेगन में 1880 और 1881 में वह प्राइवेडोजेंट विश्वविद्यालय में है.
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वह एक ओर व्याकरण, भाषाशास्त्र, कलाशास्त्र, दर्शन और छंदशास्त्र के छोरों को छूता है, तो दूसरी ओर मनोविज्ञान और शरीरक्रिया विज्ञान से भी जा जुड़ा है।